मंगलवार, अगस्त 19

मोहब्बत


क्या हुआ अगर ज़मीनी दूरी है,
दिल को तो मोहब्बत उनसे पुरी है ,
दिखाई कैसे देगी धड़कन ,
"और चाहत "
ये तो ऐसे जैसे
मृग में छुपी कस्तूरी है

9 टिप्‍पणियां:

art ने कहा…

bahut sundar upma

vipinkizindagi ने कहा…

अच्छी पोस्ट

योगेन्द्र मौदगिल ने कहा…

वाह...
अच्छा अंदाज है आपका,
बधाई..

Pawan Kumar ने कहा…

kya baat hai abhinn ji
choti si nazm me khoobsoorat bhaw...

मीत ने कहा…

bahut acha likha hai yar...
prem ki ek avismarniya abhivyakti likh di apne to...

* મારી રચના * ने कहा…

ये तो ऐसे जैसे
मृग में छुपी कस्तूरी है

bahut hi acchi line hai ye....

समीर यादव ने कहा…

आपकी टिपण्णी/प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया. अच्छा लगता है जब आपको कोई उन्ही सन्दर्भों को लेकर सकारात्मक टीप देता है जिन सरोकारों को लेकर रचना रचित कि गयी है. आपसे निरंतरता बनी रहेगी .....कस्तूरी...मृग ...जैसे. पुनश्च धन्यवाद सुकवि बुधराम यादव की ओर से.

Pawan Kumar ने कहा…

आपके ब्लॉग पर पहली बार आया.
चाहत
ये तो ऐसे जैसे
मृग में छुपी कस्तूरी है
भाई क्या कमाल किया है . बेहतरीन पोस्ट. एक अच्छी रचना .आपकी लेखनी को धन्यवाद.

बेनामी ने कहा…

nice blog
nice post
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