रविवार, अगस्त 3

ये आग


आँख भर आंसुओं से नहीं ये आग बुझने वाली
मोम की बनी है ये दुनिया जो जलने वाली
उठे सवालों की गर होती परवाह किसी को
तो बात करता हर शख्स संभलने वाली
जल रही किसी की ख़ुशी अरमान किसी के
तेरी सोच, तेरी ख़ुशी से नहीं ये दुनिया चलने वाली
अमन का पंछी उड़ कर कहाँ जाएगा इस से बच के
पर उसके भी जला देगी ये आग दहकने वाली
हमारी ही हवस से निकली चिंगारियों का असर
हम ही न बदले जब तक ये भी न बदलने वाली

5 टिप्‍पणियां:

* મારી રચના * ने कहा…

sure ji...jaha hum ruk gaye thay wohi shabdo ka apako saharam il gaya... bahut hi badhiya likha hai.. aur hsukriya aap ki comments kel iye bhi....

ilesh ने कहा…

अमन का पंछी उड़ कर कहाँ जाएगा इस से बच के
पर उसके भी जला देगी ये आग दहकने वाली
हमारी ही हवस से निकली चिंगारियों का असर
हम ही न बदले जब तक ये भी न बदलने वाली

nice creation.......

'sakhi' 'faiyaz'allahabadi ने कहा…

acchi hai..............

vipinkizindagi ने कहा…

achchi rachna hai .......

Udan Tashtari ने कहा…

आनन्द आ गया.