गुरुवार, जनवरी 29

"मेरा गीत है प्यारा ला दो ना"


मुझको मेरा गीत है प्यारा ला दो ना
सरगम की ये बहती धारा ला दो ना
भूल न जाना कर के वादा
हो न जाए एक पल भी ज्यादा
पल पल में गए युग युग बीत
मुझको मेरा प्यारा गीत ...
हाँ गीत ये प्यारा ला दो ना
निभा सको न तो क्यों किया है
प्रेम वचन क्यों तुमने लिया है
हार हमारी किसकी जीत
मुझको मेरा प्यारा गीत.....
हाँ गीत ये प्यारा ला दो ना
गीत नही ये अतीत है मेरा
हाँ यही तो है मनमीत मेरा
क्या हुआ जो रूठे दिल का मीत
मुझको मेरा प्यारा गीत
हाँ गीत ये प्यारा ला दो ना

रविवार, जनवरी 11

हुआ नही क्यों ?

क्यों नही है प्यार का दस्तूर यहाँ पर
प्यार भी लेकिन कहाँ मंजूर यहाँ पर
शराबों से अफीमों से बहकते है कदम
हुआ नही क्यों प्यार का सरूर यहाँ पर
बमों की बारूदों की क्यों होती हैं खेतियां
उगेंगे कब जाने आम 'ओ अंगूर यहाँ पर






सोमवार, जनवरी 5

मैं और मेरा लक्ष्य


बड़े विचित्र है हम दोनों

बड़े पवित्र है हम दोनों

मै और मेरा लक्ष्य

किसी त्रासदी के

चरित्र है हम दोनों

मै आस्तिक हूँ

मै प्राकृतिक हूँ

इसीलिए......

एक लक्ष्य चुना मैंने

सत्यम शिवम सुन्दरम

पाना पथ पहचाना मैंने

लिए हुए है आकर्षण

अद्वितीय ,अनुपम उत्कर्षं

कब पाऊं उसे प्रतीक्षा में वो

कैसे पाऊं उसे शंसय में मैं

साहस न उसमे उतरने का

न मुझमे उड़ने की क्षमता

एक आकाश की दूरी मध्य में

एकांत से बड़कर भयावहता

कभी छु लूँगा अपने लक्ष्य को मै

कभी उड़ पाउँगा नील नभ में मैं

कभी उगेंगे पंख मेरे

लहराऊंगा नील नभ में मैं

है यही प्रसन्नता पर्याप्त मन में

मेरा लक्ष्य सदा ही रहेगा मेरा

सुलभ हो या दुर्लभ हो मार्ग

एक लक्ष्य एक मार्ग ही होगा

पहुँच जाऊंगा उसके गुरुत्वकर्ष्ण में

फी चाहे वहीं निस्वास हो जाऊं

पर लग्न बहुत है लक्ष्य की

उस हेतु कुछ भी कर जाऊं

उसे छूने के लिए चाहे तो

हाथ भी अपने बेच डालूँ

उड़ कर जाने के लिए उस तक

पंख भी कटवा कर फ़ेंक डालूँ

मै अर्जुन का तीर.......

वो तैरती मीन का नेत्र है

है यही यही लक्ष्य मेरा

पूरा ब्रह्माण्ड मेरा रणक्षेत्र है

शनिवार, जनवरी 3

मेरे लिए तो आ

कोई आवारा हो

कोई बेसहारा हो

दीवाने हो

मस्ताने हो

हवा हो, बादल हो ।

या कोई पागल हो

बेपरवाह हो

लापरवाह हो

या कोई लावारिस है

आपसे ही तो .........

मेरी एक गुजारिस है

हवा की तरह आवारा होकर

मेरे लिए आ जाना हमारा होकर

मुझे ख़ुद में लपेट लो

खुसबू की तरह

कायनात में बिखेर दो ।

बेपरवाह बादल बन

भिगो दो मेरा तन मन

अपने दिल की दौलत लुटा दो

मेरा दिल खुशिओं से भर दो

मेरे लिए इतना तो कर दो

आवारगी को मंजिल मिला दो

तिस्नगी को शकुन दिला दो

मुझे मालूम है की

आजादगी है ज़िन्दगी

ज़िन्दगी आजादगी

पर एक मुकाम के बिना

बेकार है आजादगी




गुरुवार, जनवरी 1

हर नई सुबह

हर नई साँस पर

नयापन होता है

हर नई सुबह को

नयापन होता है

जिसकी ज़िन्दगी में हो ठहराव.....

उसे नया क्या ?पुराना क्या?

नया नया कहने से फर्क क्या पड़ता

एक भूखे की भूख को

एक मजबूर की मजबूरी को

मिल जाए निवाला भूखे को तो

पा लेता वो जीवन नवेला

मिल जाए सहारा मजबूर को

नव निर्माण हो सकता है

हर अंधेरे का अंत होता है

हर उजाला भी स्थाई नही होता

हर आँख में एक स्वप्न होता है

हर साँस में एक नयापन होता है