शनिवार, जनवरी 3

मेरे लिए तो आ

कोई आवारा हो

कोई बेसहारा हो

दीवाने हो

मस्ताने हो

हवा हो, बादल हो ।

या कोई पागल हो

बेपरवाह हो

लापरवाह हो

या कोई लावारिस है

आपसे ही तो .........

मेरी एक गुजारिस है

हवा की तरह आवारा होकर

मेरे लिए आ जाना हमारा होकर

मुझे ख़ुद में लपेट लो

खुसबू की तरह

कायनात में बिखेर दो ।

बेपरवाह बादल बन

भिगो दो मेरा तन मन

अपने दिल की दौलत लुटा दो

मेरा दिल खुशिओं से भर दो

मेरे लिए इतना तो कर दो

आवारगी को मंजिल मिला दो

तिस्नगी को शकुन दिला दो

मुझे मालूम है की

आजादगी है ज़िन्दगी

ज़िन्दगी आजादगी

पर एक मुकाम के बिना

बेकार है आजादगी




4 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

वह साहब बहोत ही खुबसूरत कविता लिखी है आपने
बहोत खूब,बहोत ही संजीदा है ये तो ...कुछ जगह तो एसा है के
आपके सोंच को एक मिक्कामल करता है बहोत ही बेहतरीन कविता
आपका ध्यान थोड़ा दिलाना चाहूँगा कहीं कहीं पे सिर्फ़ शब्दों
ठीक करना है ...बस जान दल दी है आपने
नव आपके तथा आपके परिवार को सुख और समृधि दे
यही दुआ करूँगा और दुरुस्त रहे .........

अर्श

अभिन्न ने कहा…

अर्श जी बहुत बहुत धन्यवाद कविता को दिल से पढने ओर सराहने के लिए आप जैसे साहित्य प्रेमी की नज़र ओर सोच बहुत ही न्यायिक होती है दिल से धन्यवाद कबूल हो
ओर कृप्या थोड़ा सा कष्ट ओर ....इंगित करें की कौन कौन से शब्दों की वर्तनी में सुधार करना है.बाकि आप को भी मेरी तरफ़ से नए साल की मुबारकबाद सुख समृद्धी ओर स्वास्थ्य एक सच्चे दोस्त की तरह आपके हमेशा साथ रहे

seema gupta ने कहा…

" mind blowing creation of yours, great work"

regards

Urmi ने कहा…

वाह वाह क्या बात है! बहुत ही शानदार लिखा है!