शुक्रवार, जुलाई 17

हम चाहते रहे तुम भूलाते रहे हो .


हमे खो देने का डर जताते रहे हो ।
पाने से क्यों हमेशा कतराते रहे हो ।

दिल ही तो था, तेरे क़दमों के नीचे,
जिसे ठोकर हर कदम लगाते रहे हो ।

कोशिश रही हम बात करे खुलकर
खामोशी तुम लबों पर सजाते रहे हो

चाहत भरे दिन थे जाने कहाँ छूटे ?
हम चाहते रहे तुम भुलाते रहे हो ।

गुनाह हुआ हमसे हमें ही नही मालूम,
सजा लम्हा लम्हा हमें दिलाते रहे हो ।

छोड़ आए थे कहाँ ,खोजते हो किस जगह ?
बेवफा होकर भी कैसे प्यार जताते रहे हो ।

बंधता गया राम सीमाओं में हर बार मै
सीता बन, धरा में तुम समाते रहे हो ।

7 टिप्‍पणियां:

"अर्श" ने कहा…

वाह जनाब क्या खूब शमा बंधा है आपने बहोत बेहतरीन ... कितनी खूबसूरती से भावः को शब्द दिए है आपने बहोत बहोत बधाई हुजुर..
और हाँ जब बारात जाने का समय आये तो आपको कैसे भूल सकते है मगर बात तो ये है के कोई उस पार से आवाज़ दे ही नहीं रहा अभी तक हा हा हा जब देगा तो आपको जरुर इत्तला करी जायेगी बखूबी ...

अर्श

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Apka blog to beautiful hai.

Wishing "Happy Icecream Day"...See my new Post on "Icecrem Day" at "Pakhi ki duniya"

Urmi ने कहा…

वाह बहुत ही ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! आपकी रचना की हर एक पंक्ति बहुत सुंदर है! इस बेहतरीन रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

अभिन्न जी,

गज़ल के बहाने ही सही कुछ सुकून मिला। अच्छे भाव, नया तेवर :-

बंधता गया राम सीमाओं में हर बार मै
सीता बन, धरा में तुम समाते रहे हो ।


सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

ठोकर नहीं टिप्‍पणियां लगाते हैं हम
न जाने किस किससे ठोकर खाकर
आ जाते हो और कहलाते हो अभिन्‍न।

अभिन्न ने कहा…

धन्यवाद अर्श भाई,बेबी पाखी को स्नेह,बबली जी ओर मुकेश तिवारी जी आपका दिल से शुक्रिया अपना कीमती समय निकल के ब्लॉग पढने ओर अपने अमूल्य विचार अंकित करने का ,
अविनाश जी आपकी टिप्पणी वाकई ही बुरी से बुरी ठोकर का अच्छे से अच्छा विकल्प है हर किसी को ठोकर लगाने का विशेषाधिकार नहीं दिया जाता मुझे पता है वो कौन है ? आपका सुस्वागतम ,धन्यवाद

डिम्पल मल्होत्रा ने कहा…

चाहत भरे दिन थे जाने कहाँ छूटे ?
हम चाहते रहे तुम भुलाते रहे हो ।...kitne gahre or khoobsurat ahsaaso se bhari rachna....apni si lagi...