शनिवार, फ़रवरी 20

मुझको इंसान होने पे हया आती है





मुझ को इंसान होने पर हया आती है -/
सिर्फ हया ही आती है तो क्या आती है -/

कभी तो खुदा को मस्जिद खैरात करता है ,
कभी उसे ढहा कर मंदिर की बात करता हैं ,
मज़हब पे सेंकता है खुदगर्जी की रोटियां
khudgarz insaan होने पर हया आती है -/


कभी बुद्ध या मसीह के बुत ईज़ाद करता है
कभी उनसे ही होके बागी उन्हें बर्बाद करता है
मिटाता जा रहा है चमन से निशां अमन के
ऐसा बर्बाद इंसान होने पे हया आती है -/

करता है कभी इबादत धर्मो रिवाज़ के लिए
कभी काटता है सर दंगो के आगाज़ के लिए
हलाल किया मजलूम को खुदा के नाम पर
ऐसा कातिल इंसान होने पे हया आती है -/

मुझ को इंसान होने पे हया आती है -/
सिर्फ हया ही आती है तो क्या आती है -/