शनिवार, जुलाई 31

बंदिश नहीं कोई


परेशां जब हुए हम मौसमों के लिए,
राहें आसां हो गई हादसों के लिए,


नफरत तुम्हारी अब सही न जाएगी,

दुश्मनों सी सजा क्यूँ दोस्तों के लिए ?



करना है तो कर तकसीम ज़ज्बात को
क्यूँ मरते -मारते हो सरहदों के लिए,


बंदिश नहीं कोई चिनाबो-सतलुज पर,
होती क्यूँ सियासत पानियों के लिए।


जीने को दो दाना जरुरत रोजाना उसकी
कब उड़ा बता परिंदा मोतियों के लिए